Story of Kolhan

Kolhan

कहानी कोल्हान की दरअसल यह ‘कोल विद्रोह’ से अलग हटकर कोई नई कहानी नहीं है, बल्कि उसी का एक अंग है। स्थानीय व्यवस्था अथवा बोलचाल में गाँवों के समूह को पीड़ कहते हैं, जिसमें कई गाँव शामिल होते हैं। पीड़ की व्यवस्था स्थानीय है। सन् 1821 में चार पीड़ों (थोई पीड़, भरभरिया पीड़, आऊला पीड़, लालगढ़ पीड़ ) को ब्रिटिश कंपनी सरकार द्वारा तत्कालीन बामनघाटी सबडिवीजन (उड़ीसा) को जोड़कर वर्तमान सिंहभूम जिले में जोड़ दिया गया। इन चारों पीड़ों में पूरी तरह ‘कोल’ जाति की ही आबादी थी और इसी कारण स्थानीय लोगों ने इसका नामकरण कोल्हान किया। बाद में बाकी पीड़ को उड़ीसा प्रांत (वर्तमान) के मयूरभंज राज्य में ही रहने दिया गया, जो कि कटक के कमिश्नर के ‘उड़ीसा करद राज्य’ अधिशासन में था ।


इन पीड़ों का एक प्रभारी था, जिसे सरबराहकार कहा जाता था । चार पीड़ – थोई, भरभरिया, आऊला और लालगढ़ सीधे ब्रिटिश शासन में होने के कारण सरबराहकार ने अब यह मान लिया कि वह मयूरभंज के राजा से स्वतंत्र हो गया है और उसने सिर्फ गवर्नर जनरल के दक्षिण-पश्चिम सीमांत के हजारीबाग स्थित एजेंट की आज्ञाकारिता शुरू कर दी, जबकि वास्तविकता यह थी कि उसकी वह भूमि अब भी मयूरभंज राज्य में ही थी ।


सरबराहकार ‘माधव दास’ था, जिसने असल में कैप्टन विलकिंसन को मोह लिया था । उन्होंने पूरी बामनघाटी की भूमि का अधिकार उड़ीसा के कमिश्नर को दे देने की अनुशंसा की । 3 अप्रैल, 1832 को सरबराहकार ने मयूरभंज राज्य के विरुद्ध बगावत कर दी और कलकत्ता से नागपुर जानेवाली दक्षिणी सड़क, जो कि मेदनीपुर और संबलपुर होकर जाती है, उसके किनारे पड़नेवाले कुछ गाँवों को जला दिए गए। ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार को कटक के कमिश्नर मिस्टर स्टॉकवेल से 6 अप्रैल को एक रिपोर्ट प्राप्त हुई, जिसमें कहा गया था कि राजा यदुनाथ भंजदेव और बामनघाटी के सरबराहकार को उनके बीच के विवाद के समाधान हेतु बुलाया गया है। दोनों पक्षों ने उड़ीसा के बालासोर के कमिश्नर के यहाँ उपस्थिति दी। जनवरी से 11 मार्च तक की सुनवाई के बाद कमिश्नर ने फैसला दिया कि मयूरभंज के राजा यदुनाथ भंजदेव को अधिकार है कि वह सरबराहकार को हटा सकता है अथवा उसकी भूमि पर अधिकार के नियम में परिस्थितिवश संशोधन या परिवर्तन किया जा सकता है।


कमिश्नर का दूसरा फैसला उड़ीसा के भूमिपतियों के अधिकारों के इतिहास में अधिक महत्त्वपूर्ण है। मि. स्टॉकवेल अपने दूसरे निर्णय में कहता है, ‘यह एक आंतरिक व्यवस्था का प्रश्न है और इस प्रकार की व्यवस्थाओं में सरकार का मत है कि कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए । सरबराहकार को प्रजा के रूप में अवश्य ही अधीनता स्वीकारनी चाहिए तथा जागीरदारी के प्रमुख की सभी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए। इसलिए यह स्पष्ट है कि मराठों की तरह दूसरों के आंतरिक मामलों में दखलअंदाजी न करने की नीति का पालन करते हुए ब्रिटिश कंपनी की सरकार ने भी 1832 ई. में राजा यदुनाथ भंजदेव और उनके बामनघाटी के मातहतों के बीच हस्तक्षेप नहीं किया । सरबराहकार माधव दास को कमिश्नर मि. स्टॉकवेल ने निर्देश दिया कि वह राजा यदुनाथ भंजदेव की सेवा – टहल करे और विशेष रूप से अधिक श्रमभक्ति दिखाकर उन्हीं के साथ अपने भविष्य का फैसला करे, किंतु रात में माधव दास सरबराहकार गायब हो गया । मयूरभंज के राजा यदुनाथ भंजदेव सरबराहकार से निबटने में समर्थ नहीं थे। अत: मिस्टर स्टौकवेल ने 47वीं देशी पैदलवाहिनी सेना लेकर बामन घाटी के लिए कूच किया। ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने मेदनीपुर में भी सेना को तैयार रहने की आज्ञा दे दी, लेकिन स्टौकवेल को सरकार की ओर से सूचना मिली कि सरकार मेदनीपुर की सेना को तुरंत कूच करने की आज्ञा देने में अनिच्छुक है।
14 अप्रैल को मिस्टर स्टॉकवेल ने कंपनी सरकार को अपना प्रतिवेदन भेजा कि पाँचों पीड़ समूह

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